जैसा भी हो नसीब मगर दिन तो कटेगा
मुफ्लिस तो पेट के लिये दिन- रात खटेगा
पाओं में आबले हैं , बड़ी दूर मनाज़िल
पुरख़ार रास्ते है, चलो, दर्द बँटेगा
वाइज़ का मोज़िज़ा मै बहुत देख चुका हूँ
अब अपनी रोशनी से ये अन्धेर घटेगा
मुझको यकीं है वो जो अभी तक है तहाजुल
डट जाउँगा अगर तो मेरे साथ डटेगा
सब दे दिया है इसलिये बनना न खरीदार
मौला भी ताज़िरों को कयामत पे जटेगा
सबको गले लगाओ मगर सोच समझ कर
काँटो से दिल लगाओ तो दामन तो फटेगा
दुश्मन कोई नहीं है अगर जान लिया है
इल्ज़ामे- दुश्मनी भी तिरे सर से हटेगा
मुफ्लिस तो पेट के लिये दिन- रात खटेगा
पाओं में आबले हैं , बड़ी दूर मनाज़िल
पुरख़ार रास्ते है, चलो, दर्द बँटेगा
वाइज़ का मोज़िज़ा मै बहुत देख चुका हूँ
अब अपनी रोशनी से ये अन्धेर घटेगा
मुझको यकीं है वो जो अभी तक है तहाजुल
डट जाउँगा अगर तो मेरे साथ डटेगा
सब दे दिया है इसलिये बनना न खरीदार
मौला भी ताज़िरों को कयामत पे जटेगा
सबको गले लगाओ मगर सोच समझ कर
काँटो से दिल लगाओ तो दामन तो फटेगा
दुश्मन कोई नहीं है अगर जान लिया है
इल्ज़ामे- दुश्मनी भी तिरे सर से हटेगा
बहुत उम्दा रचना है सर जी ....
ReplyDeleteवाह-वाह-वाह .
Thanks Virendra Ji.
ReplyDeleteखुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ..............माफी चाहता हूँ..
Thanks Sunil Ji, Sanjay Ji.
ReplyDelete