Thursday, November 11, 2010

कौन

हर इक सूरत में तेरी सूरत बसा देता है कौन
गौर से देखूँ तो फिर तुमको छुपा देता है कौन

जिस जहाँ में अपने भी रहते नहीं अपने, बता
उस जहाँ में गैरों को अपना बना देता है कौन

वो तो अपने प्यार की खातिर लिपटता दीप से
इतनी बेरहमी से पांखी को जला देता है कौन

इक सुबह होती है मिलनी हर सुनहरी शाम को
रात को इस बीच में बेवज़ह ला देता है कौन

लादकर कंधे पे बचपन में ही जिम्मेदारियाँ
बच्चों को बे उम्र ही बूढा बना देता है कौन

हम समझते हैं कि हम तो कर रहे हैं तय सफ़र
इस जमी को रोज कुछ आगे बढ़ा देता है कौन

जिंदगी भर अपने को धो मांज चमकाते हैं हम
एक पल में फिर हमें मिट्टी बना देता है कौन

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