Monday, November 1, 2010

मियाँ जमीर

बहुत दिनों से सोच रहा था
की मैं भी फेसबुक पे जवान हो जाऊँ.
बदल दूँ प्रोफाइल की फोटो
और हटा दूँ जन्म तिथि से साल.
बस इतना ही तो करना होता है.
फिर लिखूं कुछ चटपटी शायरी,
उम्र के हिसाब से
और बना लूँ बहुत सी कन्याओं को दोस्त.
पर क्या करूँ?
मेरे अन्दर एक सख्स ने
अपना स्थाई निवास बना रखा है.
ये हैं मियाँ जमीर.
जनाब कुछ करने ही नहीं देते.
जब देखो उठ के खड़े हो जाते हैं.
बखेड़ा खड़ा कर देते हैं साहब.
सोने नहीं देते
जब तक मान न ली जाय
इनकी बात .
सो मैंने इनके डर से ही
इस पुनीत इच्छा को दबाया
और बने हैं अट्ठावन के.
अब जो भी हो
कम से कम मियाँ जमीर तो खुश हैं.

2 comments:

  1. बहुत अच्छे... आज जो हो रहा है वो आपने बड़े ही अच्छे-से प्रस्तुत किया है... बधाई...

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