Monday, October 11, 2010

माँ का इंतकाम

धन्यवाद.......
धन्यवाद मेरे तथाकथित जीवनसाथी
तुमने किया था वादा
जिंदगी भर साथ निभाने का
पर टूट गए न
तुम भी
डरपोक और कमजोर
आशिकों कि तरह
छोड़ दिया मुझे
उस राह पर अकेले
जहाँ, चाहूँ भी तो नहीं पकड़ सकती
किसी और का दामन
क्यों कि अब है साथ मेरे
तेरा सूनापन और मेरा अपनापन

छोड़ गये मुझको पर कुछ तो दे गये
दुनिया जिसे कहती है जीने का सहारा
मैं बनाऊँगी उसे हथियार 
लूँगी इंतकाम तुमसे
तुम्हारी हर कमजोरी का

जो कुछ भी तुम नहीं कर सके
सब कुछ वो करेगा
किया तो तुमने
पर तुम्हारा बेटा भरेगा
तुम हो डरपोक
बेटे को बहादुर बनाऊँगी
तुम तो न दे सके मुझे
मेरे हिस्से कि खुशियाँ
अब वो देगा मुझे
सारे जहाँ कि खुशियाँ

तुम रहे निपट स्वार्थी
मैं सिखाऊँगी
उसे जीवन का मतलब
दूसरे के काम आना ही
जिंदगी का मकसद
मैं उसका बनाऊँगी

कर नहीं सकता कोई
मेरे बेटे को जुदा मुझसे
अगर तुम भी करना चाहोगे
तो जान लोगे वो सच
जो आज तक नहीं जान पाए
कि
माँ और उसकी संतान के बीच
होती है दुनिया की
सबसे खतरनाक जगह
कोशिश करके देखना
मैं तो क्या
बिल्ली भी काट खाएगी
पर अपने बच्चे को बचाएगी

तुम पर तो मैं
न कर सकी नाज़
पर मेरे बेटे पर
दुनिया नाज़ करेगी
और इस तरह
माँ की सूनी झोली भरेगी
और होगा पूरा मेरा इंतकाम

और तब
कर सको हिम्मत
तो सामने आना
मुझको तो छोड़ दिया
मेरे बेटे को गले लगाना
मैं इंतक़ाम इस तरह लूँगी
तुम्हे माफ़ कर दूँगी

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