कुलबुलाया मेरे मन में
समाज सेवा का कीड़ा
मैंने सोचा
कुछ करना है
किया जाय कुछ ऐसा
जो बन जाय नसीहत
किया मैंने निश्चित
दूंगा अपनी एक आँख
किसी अंधे को
दर्शन कराऊंगा उसे
इस हसीं दुनियां के
दे दी मैंने
अपनी एक आँख
और खुद हो गया काना
दाहिनी आँख का स्थान
खाली हो गया
पर मन गर्व से भर गया था
पट्टियां खुलीं
साथ साथ दोनों की
देखना चाहता था
मैं उसे खुश होते हुए
देखना चाहता था
वो मुझे ही सबसे पहले
पर जो हुआ
कभी सोचा न था ऐसा
मुझे देख वो बोला
आप लोगों ने
ये क्या कर दिया
सबसे पहले एक
काने को दिखा दिया
कर दिया अपशगुन
मैं क्या, सभी थे स्तब्ध
और मैं सोच रहा था
जिसको आँख दिया
वही मुझे कह रहा है काना
ये कैसा ज़माना
पश्चाताप कर रहा था मैं
ये सोचकर कि
ये तो अभी भी अंधा है
जिसको आँख दिया
वही मुझे कह रहा है काना
ये कैसा ज़माना
पश्चाताप कर रहा था मैं
ये सोचकर कि
ये तो अभी भी अंधा है
आँख के अंधे तो
ठीक हो जाते हैं
नेत्रदान से
पर दिमाग के अंधे का तो
भगवान ही मालिक है
कर भलाई तो झेलो बुराई .....कि प्रचलित प्रथा कि कलई खोलती एक बेहतरीन कविता भाई
ReplyDeletewahwa....
ReplyDeleteबेहतरीन कविता...
ReplyDeletebahut khoob kaha
ReplyDeletewapis le lo kambakht se...
आपका,लेख की दुनिया में हार्दिक स्वागत
ReplyDeleteअच्छा लेख
शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteएक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!
-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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Thanks to all for your comments and encouraging notes.
ReplyDeleteBhai surendra Singh Ji, aapki salaah par amal kat liya gaya hai.