कोई नहीं कि गुनाहों से रोकता है मुझे
मेरा जमीर ही अक्सर झिझोड़ता है मुझे
कोई तदबीर ऐसी मुझको सूझती ही नहीं
बेरहम दुनिया का दस्तूर टोकता है मुझे
जिसने छीना है उसे मार तो डालूँ लेकिन
तुम्हारी माँग का सिन्दूर रोकता है मुझे
सोचता हूँ अभी भी क्यूँ तेरी ही बावत मैं
ये ख़याल भी रह रह के कोसता है मुझे
जी करता है मैं किसी को खा जाऊं कच्चा
मेरा ज़मीर खुद मुझको परोसता है मुझे
उफ़ तेरे लब, तेरे आरिज़, तेरी कुशादा जबीं
मैं इन्हें खोजूं, दिल मेरा खोजता है मुझे
बहुत ही सुंदर ...पढने के बाद भी कशमकश जारी है
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