Wednesday, October 6, 2010

पडोसी







उस देश का तो भैया कुछ हो नहीं सकता
जिस देश का हो सारा सिस्टम गला हुआ

करते ही जा रहे हैं वो कोरी सी बकवास
सारा का सारा जुमला पहले चला हुआ

उस देश का अवाम तो गुमसुम अवाक है
पाता है अपने आपको जैसे छला हुआ

किस पर करे यकीन और किस पर न करे
है कशमकश में जैसे दूध का जला हुआ

मिलती है इमदाद कही से तो यूँ लगे
जैसे पुराने मुक़दमे का फैसला हुआ

बदले में दे दिया है पडोसी से दुश्मनी
मीठा दूध कहा दे दिया नमक डला हुआ

कुछ सूझता नहीं अब सियासतदानो को 
बादलों के पीछे जैसे सूरज ढला हुआ 

हसरत से हमें देखती अवाम तो लगे
हो अपना खून पडोसी के घर पला हुआ

समझ गए हैं हम भी उनका मिजाज़ है 
जैसे करेला नीम के ऊपर फला हुआ



लो सबक पडोसी कुछ बिगड़ा नहीं अभी
दुश्मनी से आज तक किसका भला हुआ

वर्ना फिरोगे दर बदर छिपाते हुए मुँह
खुद ही मुँह पे जैसे कालिख मला हुआ


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