Sunday, October 10, 2010

हमसफ़र

हाथों कि लकीरों को क्यूँ निहारा करते हो
हाथों के दम पे क्यों नहीं सवांरा करते हो

खुशियों के जिम्मेदार तुम कहते हो अपने को
गम हो कोई मेरी तरफ इशारा करते हो

अकेले दस कदम में थक के हो जाते हो चूर
तो साथ चलना क्यूँ नहीं गंवारा करते हो

अच्छे दिनों में मौज मनाते हो अकेले
दुर्दिन का मेरे साथ क्यूँ बंटवारा करते हो

हम तो हमेशा साथ निभाने को हैं तैयार
तुम नाहक अपनी आँख को फव्वारा करते हो

तू  हमसफ़र तो बन दिन अच्छे हों  या बुरे
बेवजह मायूसी में दिन गुजारा करते हो

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