दिल में जो भी था वो लब पे खुद ब खुद आता गया
शेर मैं लिखता गया और दिल को बहलाता गया
सोचने का वक़्त है किसको कि देखूँ क्या लिखा
हर बयाँ के साथ दिल का जख्म गहराता गया
आँखें नम और जेहन में तस्वीर उनकी खंदाज़न
अश्कों कि गागर भरी रुक रुक के छलकाता गया
आज तक मैं जान न पाया कि क्या ये माजरा
दे के आँसू आँख को वो दिल को हँसाता गया
चैन मिलता है क्यूँ रोने में किसी के वास्ते
मैं न समझा हूँ न समझूँगा, यही गाता गया
kya baat hai sureshji wah
ReplyDelete...vidyanand hadke