Monday, October 4, 2010

ख्वाहिश




जलूँगा मैं, यकीनन, है ये ख्वाहिश आखिरी मेरी
खुशबू फैलाये, हर ज़र्रा मेरा लोहबान हो जाये

गरीबों के बदन को भी मिले कुछ ढकने का सामां
मजारें शर्म से खुद दाखिल-इ-शमसान न हो जाएँ

गिरे कोई तो उसको मिल के उठायें हजारो हाँथ
खैरखाही ही अब हर सख्स का ईमान हो जाए

मेरे हाथो से भी नेकी भरा कुछ काम करवा दे
जहाँ से जाऊँ, नाम मेरा इक उन्ह्वान हो जाये

बढाऊँ जब कदम सब छोड़ के मैं, तुम को पाने को
मेरी ख्वाहिश है कि मंजिल मेरी आसान हो जाए

किसी मुफलिस से आँखे मोड़ने का सोचूँ मैं अगर
तुम्हारे होने का मुझको तुरत इमकान हो जाए

कोई मंदिर में न जाये, कोई मस्जिद में न जाये
कुछ ऐसा कर कि ऐसे चलन का उठान हो जाये

किसी भी पल अगर तुझको भुलाऊँ औ बहक जाऊँ 
किसी मस्जिद से ऐन उसी वक़्त अजान हो जाए

ए खुदा ऐसी सीरत बख्श अपने बन्दों को जिससे
कुरान गीता हो जाए , गीता कुरान हो जाये

1 comment:

  1. kisi bhi pal agar tuzako bhulau ....
    kisi masjid se ain usi waqt ajaan ho jaye

    wah diwana bana diya aapne

    ........vidyanand hadke

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