हे बापू !!
सुनते हैं ?
ई लाठिया लिहे,
ठेहुनी पे धोती चढ़ा के,
कहाँ चल देते हैं सबेरे सबेरे
कौनो सुनता है आपकी
काहे लिए सेहत खराब करते है
रोज उतर के जाते हैं
झाँक के चले आते है
एक बार जो किये और जो पाए
लगता है पेट नही भरा
का देखने जाते हैं ?
घूम घूम के अपनी मूर्ति से
धूल झाड़ने जाते हैं का ?
और ई आज काहे लिए जा रहे हैं ?
आज तो चैन से बैठिये
जनम दिन है आपका
आज तो अपने आप ही चमकाएँगे
झंडा फहराएंगे
भाषण देंगे
और जाने का का नौटंकी करेंगे
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लौट आये, बहुत जल्दी
का बात है
बहुत खुश हैं आज
ई देखो.... कैसे गदगद हैं
इतना खुश तो आज तक न दिखे
बहुत मुस्किया रहे हैं
प्रसन्न हैं
हम समझ गए
लगता है
बच्चे सुधर रहे हैं
हे बापू
आपको खुश देखके
आज हमरा मन भी बहुतै प्रसन्न है
देखिये न
हमरी आँखें
खुशी के आँसू हैं ये इनमे
हे भगवान, कितने साल बाद
देखी है ये मुस्कराहट
अब से आप दू बार जाइये न
नही रोकेंगे
पर ऐसे ही मुस्कराते रहा करिए
बापू..... तानी इधर देखिये
अब आपको का हुआ ?
काहे मुह घुमा के
आँख पोंछ रहे हैं
रो रहे हैं न ?
.....................
अरे नहीं भाग्यवान
आज लगा की मेंरी मेहनत सफल हो गयी
आज अपने बच्चों को
साथ साथ देख के बहुतै अच्छा लगा
जी भर आया
आज तो हम बहुत खुश हैं
हम रोएंगे काहे लिए?
ये तो खुशी के आँसू हैं
शेष धर तिवारी, इलाहबाद, २ अक्टूबर २०१०
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