चिंतन
ग़ज़ल और कवितायेँ
Sunday, September 26, 2010
हालात
पहचान तो लूँगा उन्हें, हों कैसे भी हालात
एक दौर था जब उनके ही पहलू में रहते थे
साथ में गर जीने न पाए तो क्या हुआ
हम साथ साथ मरने की बातें तो करते थे
इक दौर था, इक दूसरे का प्यार मिलता था
हँसते थे साथ साथ तो मिलती थी हर खुशी
अब दौर, कि मरना भी मुश्किल एक दूजे पर
मुमकिन नहीं है, छीन लें एक दूजे कि हँसी
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