जाने क्यों मैं जिन्दा हूँ
अपने हँसने, अपने रोने
सब पर तो शर्मिंदा हूँ
जाने क्यों मैं जिन्दा हूँ
जिन्दा हूँ मैं शायद, क्यों कि
मेरी जरूरत है अपनों को
सोचें भी मेरे बारे में,
फुर्सत जरा भी नहीं जिनको
मैंने क्या क्या सपने देखे
थीं कितनी सारी आशाएँ
बिखर गए सारे सपने और
ख़तम हुईं सब अभिलाषाएं
कोई मुझको एक वज़ह दे
जीने का बस एक सबब दे
जिसको कभी नकार सकूं ना
मेरी सारी सोच बदल दे
आते हैं मेरे मन में भी
कारण कई, मिले भी मुझको
पर सब के सब हुए निरर्थक
पाता खड़ा अकेला खुद को
जीता रहूँ कि मैं मर जाऊं
मुझको तो दिखते खुश सब हैं
वैसे ही खुश जैसे अब हैं
किन्तु एक अंतर दिखता है
नहीं आश्रित मेरे ऊपर
सब अपने बारे में सक्रिय
सभी हो गए कर्मठ कर्ता
मैंने कितना बुरा किया जो
इनको रखा बना के निष्क्रिय
देखो कितने खुश हैं ये सब
पर मुझको चिंता है एक
फिर कोई न मुझसा बन के
इनका निश्चित संबल बन के
इन्हें बना दे फिर परजीवी
और जिए मेरे जीवन को
हे इश्वर इनको समझा दे
इनको जिम्मेदार बना दे
और हो सके तो मुझको
जीने का कोई सार बता दे
नहीं पलायन अच्छा लगता
प्यारा अपना बच्चा लगता
मैं अपनी इस कमजोरी पर
कभी नहीं शर्मिंदा हूँ
इसी लिए मैं जिन्दा हूँ
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