Saturday, September 18, 2010

मिजाज़-पुर्सी




देख के मुझको, गुस्से से तिलमिलाया क्यूँ
अपने ज़ज्बातों को, चेहरे पे वो, लाया क्यूँ

खयालो में वो, मुझसे ही लड़ रहा होगा
सामने मैं हूँ, ये इमकान न रहा होगा

मानता हूँ की मुद्दतों से ऐसा हाल न था
दर्मियाँ अपने, जब कोई भी सवाल न था

 हम तो उसकी मिजाज़-पुर्सी को आये थे
जिसने मेरे लिए आंसू कभी बहाए थे



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