चिंतन
ग़ज़ल और कवितायेँ
Saturday, September 18, 2010
मिजाज़-पुर्सी
देख के मुझको, गुस्से से तिलमिलाया क्यूँ
अपने ज़ज्बातों को, चेहरे पे वो, लाया क्यूँ
खयालो में वो, मुझसे ही लड़ रहा होगा
सामने मैं हूँ, ये इमकान न रहा होगा
मानता हूँ की मुद्दतों से ऐसा हाल न था
दर्मियाँ अपने, जब कोई भी सवाल न था
हम तो उसकी मिजाज़-पुर्सी को आये थे
जिसने मेरे लिए आंसू कभी बहाए थे
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