Monday, April 21, 2014

दर्द अगर खुद दवा नहीं होता

दर्द अगर खुद दवा नहीं होता 
जख्म कोई भरा नहीं होता 

तुम तसव्वुर में जब नहीं होते 
तब भी क्यूँ दूसरा नहीं होता 

ज़द पे जब हो नहीं कोई मंज़िल 
रास्ता रास्ता नहीं होता 

इसकी फितरत है सामने आना 
सच पसे आइना नहीं होता 

ज़र्द पत्ते हमें बताते हैं 
पेड़ हरदम हरा नहीं होता 

अश्क़ अफशां नहीं रहे होते 
घर किसी का बचा नहीं होता 

बच के चलता जो खुद-परस्ती से 
आदमी यूँ गिरा नहीं होता 

दर्द है ज़ख्म का रफ़ीक़ ऐसा 
जो कभी बेवफा नहीं होता 

2 comments:


  1. बच के चलता जो खुद-परस्ती से
    आदमी यूँ गिरा नहीं होता .....सही कहा सर

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