Monday, April 21, 2014

मैं जर्रों की तरह हल्का नहीं हूँ

किसी की आँख में चुभता नहीं हूँ 
मैं जर्रों की तरह हल्का नहीं हूँ 

अभी हालात से बिखरा नहीं हूँ 
मगर सच ये भी है यकजा नहीं हूँ 

चमक मुझमे भी है खुर्शीद जैसी 
मगर मैं चाँद पर हँसता नहीं हूँ 

कोई देखे मेरे दिल में उतर कर 
समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ 

फना होना है तेरे आरिजों पर 
मैं पलकों से यूँ ही गिरता नहीं हूँ 

अगर दुश्मन है तो तस्लीम कर ले 
की मैं दिल में तेरे रहता नहीं हूँ 

तुम्हारी चाह में खुद को मिटा दूँ 
समंदर! मैं कोई दरिया नहीं हूँ 

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