Monday, September 30, 2013

शरर बाकी है खुद को मत जला तूँ

शरर बाकी है खुद को मत जला तूँ 
हमारी राख को मत दे हवा तूँ 

तुझे पानी पे चलना सीखना है 
तो फिर आँखों से दरिया मत बहा तूँ 

सफीना सूए गिर्दाब इस लिए है
बना है खुद ही इसका नाखुदा तूँ 

तुझे खैरात में मिलती थीं साँसे 
मनाही हो गयी तो मर गया तूँ 

अगर दम है तो कत्ले मुंसिफी कर
दिल दे मौत की मुझको सज़ा तूँ 

मुनासिब जरह के दौरां यही है 
खता तस्लीम कर और मुस्करा तूँ 

शनासा भी बदल देते हैं रस्ता
मेरे माथे पे मुफलिस लिख गया तूँ 

हक़ीक़त में बहुत छोटी है दुनिया 
खला की बेकरानी मत दिखा तूँ 

परिंदे बुन रहे हैं जाल मिलकर 
शिकारी खैर अब अपनी मना तूँ

खड़ी है मुंसिफी आईन ले कर ले कर 
वो नबीना है, आँखें मत दिखा तू

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