Wednesday, September 11, 2013

माहो अख्तर आसमां घबरा गए हैं



आप जो जल्वे बिखेरे आ गए हैं
माहो अख्तर देखकर घबरा गए हैं 

खोजते हैं क्यूँ ये बशरीयत खला में
क्यूँ ज़मीं से आदमी उकता गए हैं 

नौजवानों को निज़ामत क्यूँ न दे दें 
जब सियासतदां सभी सठिया गए हैं

साफ़ दिख पाया नहीं चेहरा उन्ही का
जो मेरी आँखों को यूँ छलका गए हैं 

हो गए हैं चाँदनी और चाँद मुब्हम 
जब से उनके बीच बादल छा गए हैं 

टूटना इनका मुक़द्दर हो गया है 
खाब मेरे इस कदर टकरा गए हैं 

एक ज़र्रे की उन्हें क़ुव्वत पता है 
देखकर सहरा को जो गश खा गए हैं


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