Wednesday, August 7, 2013

तू यक़ीनन हमसफ़र अच्छा लगा

तू यक़ीनन हमसफ़र अच्छा लगा 
मुस्कराता  चाँद पूनम का लगा 

नाशनास  अफराद की इस भीड़ में
तू न जाने क्यूँ मुझे अपना लगा 

ज़ज़्ब हैं रुख पर सुकूनो शादमानी 
यूँ तेरा चेहरा बहुत प्यारा लगा 

तेरी सोहबत में कटा है वक़्त यूँ 
रास्ता मुझको बहुत छोटा लगा 

खुश-नसीबी बाप माँ की सोचकर 
रश्क सा उनसे मुझे होता लगा 

तेरी  अज़्मत की बुलंदी देखकर
तू मुझे बेटी नहीं बेटा लगा

खिलखिलाती जब हँसी  तेरी सुनी 
तू मुझे बहता हुआ झरना लगा 

हम जब अपनी मंज़िलों पर आ गए 
भीड़ में भी  मैं बहुत तनहा लगा


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