Thursday, November 10, 2011

सामर्थ्य हो जैसी बनाते आशियाना या किला
हिस्से हमारे जो पड़ा है वह नसीबों में मिला,
लेकिन गरीबों को टपकता झोपडा लगता किला
संतोष का सुख तो हमेशा, झोपड़ों को ही मिला

जो आप आगे बढ़ रहे हैं, आप खुश हो लीजिए
अपने सगे सम्बन्धियों पर, ध्यान थोड़ा दीजिए
ये खुश रहें तो खूब बढ़ चढ़, कर प्रशंसा ही करें
वरना जलन में तो सगे भी, बेवजह आहें भरें

सब कुछ गंवाकर जो बनाता आफिसर संतान को
फिर क्यूँ वही बेटा कुचलता, बाप के अरमान को
बेटा भुलाता बाप माँ को और अपनी पीढियाँ
क्यूँ भूलता किसने दिखाई, हैं प्रगति की सीढियाँ

बेटी अगर खुद सास को भी माँ कहे ससुराल में
फिर सास भी उस को तनूजा मानती हर हाल में
ससुराल में बेटी रहेगी यदि स्वयं बन कर बहू
तो द्वन्द तो होगा बहेगा भावनाओं का लहू

दामाद आये रोज घर यदि, तो बहुत अच्छा लगे
ससुराल यदि बेटा महीने, में गया ओछा लगे
बेटी हमारी है दुलारी, हर दुआ उसके लिए
तो क्यूँ नही घर में हमारे, भी बहू सुख से जिए

अब दान और दहेज को तो भूल जाना चाहिए
हमको हमारे पाक रिश्ते को निभाना चाहिए
एक दूजे को अगर दिल से सभी स्वीकार लें
जीवन सफल होगा हमारा प्यार देकर प्यार लें

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