Saturday, October 8, 2011

पत्थर की आँखों से ताजमहल देखा है

सपने में क्या खूब सुहाना पल देखा है
पत्थर की आँखों से ताजमहल देखा है

बैठ सहेजे छाँव उन्ही कोमल छालों को
देकर जिनको धूप हुई बेकल देखा है

मुफलिस के आंसू भी साथ नहीं देते हैं
जाते बरबस आँखों से हर पल देखा है

गुदड़ी में भी लाल छिपे होते हैं अक्सर
कीचड में भी खिलते नीलकमल देखा है

रात प्रसव पीड़ा से होकर जब भी गुजरी
हमने हर इक बार सुनहरा कल देखा है

माँ के बारे में बस इतना कह सकता हूँ  
"मैंने ममता का गीला आँचल देखा है "

माँ बापू बहना भाई हैं सच्चे रिश्ते
बाकी रिश्तों को इनका क़ायल देखा है

No comments:

Post a Comment