Tuesday, September 20, 2011


चलो हम आज इक दूजे में कुछ ऐसे सिमट जाएँ
हम अपनी रंजिशों, शिकवाए ख्वारी से भी नट जाएँ

मेरी ख्वाहिश नहीं है वो अना की जंग में हारें
मगर दिल चाहता है आके वो मुझसे लिपट जाएँ

हमारी ज़िंदगी में तो मुसलसल जंग है जारी
यही बेहतर रहेगा आप खुद ही पीछे हट जाएँ

जुदा होते हैं रस्ते, हो भले मंजिल वही सब की
नहीं होता ये मुमकिन हम उसूलों से उलट जाएँ

बना लें मिल के गर हम प्रेम औ सौहार्द की पुट्टी
दरारें हैं जो अपने बीच मुमकिन है कि पट जाएँ

हमें तो चाह कर भी आप पर गुस्सा नहीं आता
कहीं गुस्से में जो खुद आप वादे से पलट जाएँ

भरोसा है हमें इक दूसरे पर ये तो अच्छा है
गुमां इतना न हो इसका कि हम दुनिया से कट जाएँ 





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