Sunday, September 11, 2011

हर लहर सागर की साहिल तक पहुँच पाती नहीं


हर लहर सागर की साहिल तक पहुँच पाती नहीं
मिट भले जाती है लेकिन लौट कर जाती नहीं


मिल गयी मंजिल उसे जिसने सफर पूरा किया  
मंजिले मक़सूद चलकर खुद कभी आती नहीं


देख कर चेहरा, पलट देते हैं अब वो आइना
मौसमे फुरकत उन्हें सूरत कोई भाती नहीं


ज़िंदगी तो कर्म-फल के दायरों में है बंधी
गम खुशी सब में बराबर बाँट वो पाती नहीं


इस जहां के बाद भी है इक जहां, जाकर जहाँ
हम समझते हैं, कोई शै साथ में जाती नहीं

2 comments:

  1. बहुत खूब तिवारी जी, एक एक शे’र दहाड़ रहा है। बहुत बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।

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  2. यही अंतिम सत्य है

    कोई शै साथ में जाती नहीं

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