Tuesday, September 6, 2011

उस ग़ज़ल को ज़िंदगी भर गुनगुनाना चाहिए

मुश्किलों से लड़ इन्हें आसां बनाना चाहिए
तैर कर दरयाब के उस पार जाना चाहिए


जिस्म पर तम्गों कि सूरत जो हैं जख्मों के निशां
दिल में इनको अब करीने से सजाना चाहिए


ज़िंदगी जब जख्म पर दे जख्म तो हंस कर हमें
आजमाइश की हदों को आजमाना चाहिए


आईना कहता है क्या हो फिक्र इसकी क्यूँ हमें
अब ज़मीर-ओ-दिल को आईना बनाना चाहिए


देख ली दुनिया बहुत अब देखे ले दुनिया हमें
मौत को भी ज़िंदगी के गुर सिखाना चाहिए


क्या हुआ जो हमसफ़र कोई नहीं है साथ में
अब तो तनहा कारवाँ बनकर दिखाना चाहिए


ज़िंदगी खुद्दारियों के साथ जीने के लिए
जह्र पीकर शिव सा हमको मुस्कराना चाहिए


जिसके हर इक शेर ने तुम को नुमाया कर दिया
उस ग़ज़ल को ज़िंदगी भर गुनगुनाना चाहिए

3 comments:

  1. जिसके हर इक शेर ने तुम को नुमाया कर दिया
    उस ग़ज़ल को ज़िंदगी भर गुनगुनाना चाहिए
    ...............जानदार शेर .....उम्दा ग़ज़ल

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  2. मुश्किलों से लड़ इन्हें आसां बनाना चाहिए
    तैर कर दरयाब के उस पार जाना चाहिए

    bahut khoobsurat... aabhar!

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  3. धन्यवाद संजय जी, पुष्पेन्द्र जी.

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