Tuesday, August 30, 2011

हमारा ही लहू पीकर जो लालम लाल हैं देखो 
वही सड़कों को कहते ओम् जी के गाल हैं देखो  

जब इनके सामने हमने रखा इक आईना, भडके 
विशेष अधिकार का लेकर खड़े अब ढाल हैं देखो 

किरन जब भी निकलती है अँधेरा दूर होता है 
ये नादां रोशनी पर फेंकते अब जाल हैं देखो 

समझते थे जिसे थोथा चना वो बन गया "अन्ना" 
ये पागल नोचते अब हर किसी के बाल हैं देखो 

कहावत है कि "घूरे के भी दिन फिरते हैं" नेताजी 
जहीं जो हैं बदल लेते खुद अपनी चाल हैं देखो 

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