Saturday, August 20, 2011

अगर तुमने कभी उठाया होता
जिम्मेदारियों का बोझ
तो तुम्हे पता होता
कि पसीने में बदबू नहीं होती
अगर तुमने कभी
कचरे से निकाल कर
खाया होता
रोटी का सूखा टुकड़ा
तो तुम्हे पता होता कि
भूख वादों के निवालों से नहीं मिटती
अगर तुमने बहाए होते कभी
बेबसी के आंसू
तो सत्ता के गुरूर में
तुम्हारी गर्दन नहीं अकड़ती
ऐसा भी क्या सत्ता का गुरूर
कि सामान्य शिष्टाचार भी
नहीं रहा याद
ध्यान से देखा नहीं तुमने
कि जब तुम्हारी एक उंगली
कर रही थी इशारा मेरी ओर
तो तीन तुम्हारी तरफ ही थीं
अब तो तुम्हे पता चल चुका होगा
कि जनशक्ति क्या होती है
तुम्हारी एक उंगली को भी
कैसे उसने तुम्हारी ओर ही मोड दिया
समय आ गया है
आत्म मंथन करने का
अस्थाई सत्ता को भूल
सार्वभौम सत्ता को याद करने का
उससे ऊपर नहीं हो तुम
इसे स्वीकार करने का


शेष धर तिवारी

4 comments: