Wednesday, August 10, 2011

जुगनुओं की रोशनी से तीरगी घटती नहीं

जुगनुओं की रोशनी से तीरगी घटती नहीं
चाँद हो पूनम का चाहे पौ मगर फटती नहीं

ज़िंदगी में गम नहीं तो ज़िंदगी का क्या मजा
सिर्फ खुशियों के सहारे ज़िंदगी कटती नहीं

जैसी मुश्किल पेश आये कोशिशें वैसी करो
आसमां पर फूंकने से बदलियाँ छंटती नहीं

गर मिजाज़ अपना रखें नम दूसरों के वास्ते
शख्सियत अपनी किसी भी आँख से हटती नहीं

झूठ के बल पर कोई चेहरा बगावत क्या करे
आईने की सादगी से झूठ की पटती नहीं

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