Tuesday, June 28, 2011

लेखनी अंगार लिखती है

जरूरत पर यकीनन लेखनी अंगार लिखती है
नहीं तो ये मुहब्बत के मधुर अशआर लिखती है

जो अपनी जान देकर भी हमें महफूज़ रखते हैं 
ये उन जाबांज वीरों के लिए आभार लिखती है

मुहब्बत करने वालों से है इसका कुछ अलग रिश्ता
कभी इकरार लिखती है कभी इनकार लिखती है

अगर हो जाए अपना भी कोई इस देश का दुश्मन 
बिना संकोच के ये उस को भी गद्दार लिखती है 

लड़ाते हैं हमें अपनों से, ठेकेदार मजहब के
दिलों को जोड़ने के वास्ते ये प्यार लिखती है

जो अपने घर को अपना घर समझते ही नहीं, उनको 
समझती नासमझ औ मानसिक बीमार लिखती है

ये मेरी लेखनी ही है मैं जिसके साथ जीता हूँ
यही तो है जो मेरे मन के सब उद्गार लिखती है

1 comment:

  1. मुहब्बत करने वालों से है इसका कुछ अलग रिश्ता
    कभी इकरार लिखती है कभी इनकार लिखती है
    waah

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