Wednesday, May 25, 2011

फूल टेसू के खिले हैं


जोहती थी बाट जो 
वो राह अब डसने लगी है  
हाय! मेरी ढींठ अंगिया
मुझे ही कसने लगी है
राह हो, अंगिया हो,
लगता है, सभी के मन मिले हैं
समर्पण कैसे नहीं हो 
फूल टेसू के खिले हैं

आम बौराये हुए
मदमत्त महुआ झूमता है
बांह फैलाए हुए
पगलाया भौंरा घूमता है
बने दुल्हन फूल,
मन के मीत कलियों को मिले हैं
नेह का पाकर निमंत्रण
फूल टेसू के खिले हैं

मैं बसन्ती आग में जल रही हूँ
प्रियतम! कहाँ हो
चिढाती अमराइयां,
कैसे हो? कुछ सोचो, जहाँ हो
मैं अकेली रुआंसी, 
कलियों पे भौंरे दिलजले हैं
नियंत्रण कैसे रहेगा
फूल टेसू के खिले हैं

देख आ, 
कोई तुम्हारी याद में यूँ गल रही है  
छाँव भी अठखेलियाँ 
अब धूप के संग कर रही है  
तन तुम्हारा, मन तुम्हारा 
स्वप्न में तो हम मिले हैं 
मन नहीं लगता है प्रियतम 
फूल टेसू के खिले हैं

चाह मन की मन में ही कब तक रखूँ मैं 
ये बता दो 
धैर्य रख लूंगी 
अगर तुम चाह अपनी भी जता दो 
जीत लो जब मन करे 
तुझ पर निछावर सब किले हैं 
आग मन मेंरे, 
दहकते फूल टेसू के खिले हैं 

1 comment:

  1. चाह मन की मन में ही कब तक रखूँ मैं
    ये बता दो
    ...... bahut hi achhi rachna

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