Friday, April 15, 2011

लुका छिपी

लुका छिपी के तमाशे में हारती क्यूँ थी
वो छुप के मेरे दरीचे में झांकती क्यूँ थी

नज़र थी तेज तो चेहरा था सांवला उसका
खुशी में जोर से मुझको वो मारती क्यूँ थी

मिला न पाई हया से मेरी नज़र से नज़र
मुझी से पहले मेरे ख्वाब जानती क्यूँ थी

वो सज संवर के निकलती थी जब मेरी जानिब
गुदाज़ हांथों से चेहरे को ढांपती क्यूँ थी

करीब जाके मेरी माँ के उसके आँचल से
छुपा के आँख वो मुझको निहारती क्यूँ थी

मैं रो रहा हूँ तो बस उसकी चश्मे नम के सबब
कहे बगैर मेरे कर्ब जानती क्यूँ थी

4 comments:

  1. धन्यवाद संगीता जी.

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  2. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 19 - 04 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. करीब जाके मेरी माँ के उसके आँचल से
    छुपा के आँख वो मुझको निहारती क्यूँ थी
    kitne komal bhaw - jite jaagte

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