Saturday, April 2, 2011

वक़्त पुराना अच्छा लगता है


तुमको अपने पास बुलाना अच्छा लगता है 
तेरा अब हर झूठ, बहाना अच्छा लगता है 


मुझको अपना वक़्त पुराना अच्छा लगता है
बीते कल को तुम्हे छुपाना अच्छा लगता है

कितना अपनापन था, करके याद पुराने दिन 
आँखों में आंसू का आना अच्छा लगता है  

आज नुमाया हो तुम, सब को अच्छे लगते हो
अपनों से मक्खन लगवाना अच्छा लगता है 

जिसकी खातिर अपनों को भी दुत्कारा, छोड़ा 
उसको दुनिया अलग बसाना अच्छा लगता है 

फुरसत में गणना करना क्या खोया क्या पाया 
मुझको सब खोकर कुछ पाना अच्छा लगता है 

जिसने तुमको इंसां करके दुनिया से जोड़ा 
तुमको उसको खूब रुलाना अच्छा लगता है 

कितनी विकृत सोच तुम्हारी, सत्तर के होकर 
खुद को पैतीस का कहलाना अच्छा लगता है 

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