Tuesday, April 26, 2011

धुंधलका

अगर तुमने मुझे रस्ते से भटकाया नहीं होता
तो मैंने मंजिले मक़सूद को पाया नहीं होता

हमारी मुफलिसी पर रूह गर कोसे तो समझाना
की मेरे जैसों की किस्मत में सरमाया नहीं होता

ख़याल आता अगर डरते हो मुस्तकबिल से तुम मेरे
तो मीठे बोल से धोखा कभी खाया नहीं होता

तुम्हारा कल हमारे आज में पैबस्त ही रहता
तो मेरा आज मुझको इस तरह भाया नहीं होता

झुका था आसमां बढ़ कर ज़मीं भी बांह फैलाती
धुंधलका दरमियां उनके कभी छाया नहीं होता


2 comments:

  1. ख़याल आता अगर डरते हो मुस्तकबिल से तुम मेरे
    तो मीठे बोल से धोखा कभी खाया नहीं होता
    waah

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