कुदरत पर हम जब तक अत्याचार करेंगे
अपने को ही हम यूँ ही लाचार करेंगे
कुदरत का ये कहर नहीं आता है यूँ ही
क्या अब भी हम कुदरत से ब्याभिचार करेंगे
जीना है तो थोडा थोडा मरना सीखें
अपने कुछ सुख कम सारे परिवार करेंगे
मूलभूत आवश्यकताएं जो जीवन की
अब बस उनको ही हम सब स्वीकार करेंगे
बंद करें अब खेल खेलना कुदरत से
सार्वभौम सत्ता उसकी स्वीकार करेंगे
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