कभी होते हैं खुश तो बोलते हैं जाइए हटिये
कभी नाराज हो के भी कहें की जाइए हटिये
कभी ऐसा नज़ारा भी दिलों के बीच होता है
पकड़ के हाथ कहते मुस्करा के जाइए हटिये
मुसलसल इक ग़ज़ल मैंने कही उनकी अदाओं पर
पढ़ा तो चाव से, बोले की ये क्या लिख दिया, हटिये
इशारे से बुलाया, पास जाके हम बहक बैठे
छुआ जो हाँथ बोले हाय! ये क्या कर दिया हटिये
खड़े थे आइने के सामने, देखा मुझे, बोले
पडा था आँख में कुछ, देखती थी, जाइए हटिये
अचानक जो उन्हें मैंने लिया बाहों में तो बोले
किसी दिन आप मुझको मार ही डालेंगे क्या, हटिये
नजर मिलती रही, मैं पास पहुंचा, खीझ कर बोले
की कोई देख लेगा दूर रहिये जाइए हटिये
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