Friday, January 7, 2011

जाइए हटिये

कभी होते हैं खुश तो बोलते हैं जाइए हटिये
कभी नाराज हो के भी कहें की जाइए हटिये

कभी ऐसा नज़ारा भी दिलों के बीच होता है
पकड़ के हाथ कहते मुस्करा के जाइए हटिये

मुसलसल इक ग़ज़ल मैंने कही उनकी अदाओं पर
पढ़ा तो चाव से, बोले की ये क्या लिख दिया, हटिये


इशारे से बुलाया, पास जाके  हम बहक बैठे
छुआ जो हाँथ बोले हाय! ये क्या कर दिया हटिये

खड़े थे आइने के सामने, देखा मुझे, बोले
पडा था आँख में कुछ, देखती थी, जाइए हटिये

अचानक जो उन्हें मैंने लिया बाहों में तो बोले
किसी दिन आप मुझको मार ही डालेंगे क्या, हटिये

नजर मिलती रही, मैं पास पहुंचा, खीझ कर बोले
की कोई देख लेगा दूर रहिये जाइए हटिये

No comments:

Post a Comment