Monday, November 15, 2010

दोस्ती

कोई भी दोस्त गर नाराज रहे, मुझसे बर्दाश्त क्यूँ नहीं होता
दोस्ती तो हसीं नियामत है, उसको आभास क्यूँ नहीं होता

आज इस स्वार्थ भरी दुनियाँ में, मैं जिंदा हूँ दोस्तों के लिए
दोस्त गर होते नहीं साथ मेरे, मैं दुनियाँ में यूँ नहीं होता

भूल पाता नहीं मैं वो दिन जब अपनों ने साथ था छोड़ा
दोस्तों ने संभाला न होता, जीवन ये बाखुशबू नहीं होता

मेरे बच्चे अनाथ हो जाते, मेरी बीबी भी हो जाती बेवा
दोस्त गर ऐन वक़्त न आते, घर मेरा पुरसुकूं नहीं होता

आज बस इतना ही कहता हूँ, कि दोस्ती सच्ची इबादत है
दोस्तों के बिना इबादत क्या, मेरे हाथों वजू नहीं होता

3 comments:

  1. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा

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  2. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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