कोई भी दोस्त गर नाराज रहे, मुझसे बर्दाश्त क्यूँ नहीं होता
दोस्ती तो हसीं नियामत है, उसको आभास क्यूँ नहीं होता
आज इस स्वार्थ भरी दुनियाँ में, मैं जिंदा हूँ दोस्तों के लिए
दोस्त गर होते नहीं साथ मेरे, मैं दुनियाँ में यूँ नहीं होता
भूल पाता नहीं मैं वो दिन जब अपनों ने साथ था छोड़ा
दोस्तों ने संभाला न होता, जीवन ये बाखुशबू नहीं होतामेरे बच्चे अनाथ हो जाते, मेरी बीबी भी हो जाती बेवा
दोस्त गर ऐन वक़्त न आते, घर मेरा पुरसुकूं नहीं होता
आज बस इतना ही कहता हूँ, कि दोस्ती सच्ची इबादत है
दोस्तों के बिना इबादत क्या, मेरे हाथों वजू नहीं होता
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeleteबहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
ReplyDeleteThanks Sanjay Ji
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