Saturday, November 20, 2010

"हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है" 1

तुम्हारे आने की खुशबू को दिल महसूस करता है  
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है

निगाहें हैं लगी हर सू उसी इक राह की जानिब 
कि जिस जानिब से उठके तेरा जाना याद आता है 

बहुत दिन हो गए अब तो हमारे पास आ जाओ 
सुना है तुमको भी गुजरा ज़माना याद आता है  

मिरे इस घर में अब भी मैं तुम्हारी चाप सुनता हूँ 
कि जैसे घर का हर कोना मुझे छुपके बुलाता है 

मुझे देना पड़ेगा कब तलक ये इम्तेहाँ बतला 
सताने से सुना है सख्त जाँ भी टूट जाता है 

1 comment:

  1. खुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो

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