दूर रहके ही मुस्कराओगे
या करीब मेरे तुम आओगे
फिक्र अपनी नहीं तुम्हारी है
कैसे तुम जिंदगी बिताओगे
जागती आँखों में सोये कोई
नीद में मुझको ही सुलाओगे
मुझको भुलाना है नहीं आसाँ
कैसे इस बात को भुलाओगे
मिरी पुतली जो पलट जायेगी
बारहा मुझको तुम बुलाओगे
करोगे अपने से धोखा कबतक
हकीकत कब तक यूँ छुपाओगे
आजाओ , तुम जीते मैं हारा
अब तो खुश हो गले लगाओगे
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
Thanks Baskar Ji.
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