मैं नन्ही सी सृष्टि बिंदु जिसके माथे लग जाऊंगी
उसकी गरिमा को अपनी गरिमा से जोड़ बढाऊंगी
मेरा उद्गम सत्य सनातन सर्व-सृष्टि-जन-हितकारी
साधन बनती हूँ मैं लेकिन महिमा है उसकी सारी
मैं माँ हूँ, मैं बेटी हूँ, मैं पत्नी, फूफी, ताई हूँ
जो मेरे अपने हैं उनके भाग्य कि मैं परछाई हूँ
फिर भी हेय दृष्टि से मुझको क्यों देखें मेरे अपने
जिस मंदिर भी मत्था टेकूं वहां पुजारी सब अपने
पर मेरे माथे को मंदिर में ही फोड़ा जाता है
माँ के हांथो ही बेटी का खून निचोड़ा जाता है
हर मंदिर का धर्म अगर हत्या करना हो जाएगा
मुस्तकबिल कैसा होगा दुनियाँ को कौन चलाएगा
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