झुकी नज़रों से उनका मुस्कराना जुल्म ढाता है
हवा करती है सरगोशी बदन ये काँप जाता है
हँसीना जो मिली थी आज मुझको एक अनजानी
उसी की एक चितवन के लिए दिल डोल जाता है
छिपाए जा रही थी चाँद सा मुखड़ा उरोजों में
नवेली व्याहता का ज्यूँ कोई घूंघट उठाता है
खुदा भी है बड़ा माहिर, बना दीं सूरतें ऐसी
जिन्हें गर देख लो इक बार तो ईमान जाता है
चलो अच्छा हुआ, देखा उसे मैंने फकीरी में
नहीं तो इश्क, पहचाने बिना फाँका कराता है
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