Thursday, September 30, 2010

झमक झमक की झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम

झमक झमक की झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम 

कहाँ गए सब शंख नगाड़े कहाँ गयीं तलवारें
कहाँ गए सब छुरे तमंचे गुप्ती और कटारें
हार गए सारे के सारे जीते  तुम और हम 
झमक झमक की झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम 

बहुत दिनों तक पंडित मुल्ला हमको पाठ पढाये
लगा समय पर समझ गए हम ये सब हैं बौराये
घाव लगाते  यही और फिर देते हैं मरहम 
झमक झमक की झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम 

अब तो भैया पंडित जी मुल्ला से लेंगे माला 
पूजा अर्चन को जायेंगे मंदिर और शिवाला
टूटेगा न आसमान न होगा भ्रष्ट धरम
झमक झमक की झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम 

मज़हब नहीं सिखाता कोई दो औरो को गम 
मुल्ला औ पंडित जी अब बन जायेंगे हमदम 
जियो चैन से और जीने दो बहुत हुआ बम बम 
झमक झमक की झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम 

एक दूजे के लिए बन्धु थोडा झुकना सीखो
गिरे साथवाला सँभालने को रुकना सीखो 
आगे बढ़ना है तो सबको साथ ले चलें हम 
झमक झमक की झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम झैय्यम 

1 comment:

  1. सरस सारगर्भित रचना. बात केवल पंडित-मुल्ला की होती तो शायद सुलझ जाती... बिगाड़ी तो नेताओं ने है.

    ReplyDelete