Wednesday, March 15, 2017

ये ज़हनी लाचारी कब तक

ये ज़हनी लाचारी कब तक
ख़ूद से ही अय्यारी कब तक

टू जी के जी फिर जीजा जी
घर में चोर बजरी कब तक

बीती रात झाड़ते बिस्तर
सोने की तैयारी कब तक

हमने दी आजादी कहकर
जनता से मक्कारी कब तक

जो धोखा देते हैं हमको
उनसे रिश्तेदारी कब तक

कंधे पर बैठाना जायज़
कानो में पिचकारी कब तक

दुनिया हमको मूरख समझे
ऐसी दुनियादारी कब तक

बूढ़े गुड्डे की शादी की
देश करे तैयारी कबतक

करने अभ्युत्थान धर्म का
आओगे गिरिधारी कब तक 

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