Sunday, March 18, 2012

जिन्हें है शौक रौशन आतिशी का

जिन्हें है शौक रौशन आतिशी का
उन्हें चेहरा नहीं दिखता किसी का

बढाए पांव हमने सूए सहरा
मिले शायद वहीं हल तश्नगी का

रहे जिसमे बरस जाने की कुव्वत
बसे घर साथ उसके दामिनी का

दिये की लौ ज़रा सी तेज कर दो
भरम कायम रहेगा रोशनी का

उठाकर आँख भी देखा न उसने
सबब पूछा जो मैंने बेदिली का

यकायक आरिजों की सुर्ख रंगत
नहीं है मस'अला ये दिल्लगी का

अभी उनवान तक सूझा नही है
करूँ क्या तब्सिरा मैं आलमी का

हुए अपने तजाहुल मुफलिसी में
यही है अस्ल चेहरा आदमी का



2 comments:

  1. बढाए पांव हमने सूए सहरा
    मिले शायद वहीं हल तश्नगी का

    Bahut badiya gazal hai shriman

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