Thursday, February 23, 2012

खुदा की खैर है महरूमें दस्तो पा नहीं हूँ मैं

खुदा की खैर है महरूमें दस्तो पा नहीं हूँ मैं
ये क्या तकदीर लिख दी जैसे इक बन्दा नहीं हूँ मैं

तुम्हारी बेरुखी से रंज है, रुसवा नहीं हूँ मैं 
कसम तन्हाइयों की आज भी तन्हा नही हूँ मैं 


गले मुझको लगाने को तडपती है मेरी मंजिल
सफर की मुश्किलों से इस लिए डरता नही हूँ मैं

यकीं है, रात को मैं दिन कहूँ, सूरज निकल आये 
मगर रौशन खुद अपने घर को कर पाता नही हूँ मैं 

तुम्हारा अक्स आईना दिखायेगा कभी तुमको 
मैं आईना बना फिरता रहूँ ऐसा नहीं हूँ मैं  

अदावत और मुहब्बत में ज़रा सा फर्क होता है 
मुझे मालूम है तुमसे कभी कहता नहीं हूँ मैं 

चलो हम आज इक वादा निभाने का करें वादा 
निभा लो दुश्मनी जिसके लिए शैदा नहीं हूँ मैं

किसी इंसान में कमियाँ हैं तो कुछ खूबियाँ भी हैं
फक़त कमियाँ ही देखूं ऐसा कर पाता नहीं हूँ मैं

लड़ा हूँ ज़िंदगी से ज़िंदगी भर ज़िंदगी की जंग
खुदा का शुक्र है ये आज तक हारा नही हूँ मैं

किसी के काम आ जाऊं तो जीना हो सफल मेरा
फक़त जीने की खातिर ज़िंदगी जीता नही हूँ मैं

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