बहुत चाहा कि तेरी वज्म में आया करूँ मैं
अना को बेचकर खुद पर ही शर्माया करूँ मैं
तेरी मजबूरियाँ क्या हैं, नही है इल्म मुझको
मगर कहके दवा क्यूँ जह्र को खाया करूँ मैं
तेरा है शौक़ सुनना राग दरबारी तो कैसे
वहीं पर प्यार के नग्मे भला गाया करूँ मैं
न जाने कैसे कैसे लोग आने लग गये हैं
अदब से बेअदब को कैसे अपनाया करूँ मैं
कोई भगवान को पत्थर कहे, श्रद्धा है उसकी
खुदा कह कर खुदा को क्यूँ न सुख पाया करूँ मैं
अना को बेचकर खुद पर ही शर्माया करूँ मैं
तेरी मजबूरियाँ क्या हैं, नही है इल्म मुझको
मगर कहके दवा क्यूँ जह्र को खाया करूँ मैं
तेरा है शौक़ सुनना राग दरबारी तो कैसे
वहीं पर प्यार के नग्मे भला गाया करूँ मैं
न जाने कैसे कैसे लोग आने लग गये हैं
अदब से बेअदब को कैसे अपनाया करूँ मैं
कोई भगवान को पत्थर कहे, श्रद्धा है उसकी
खुदा कह कर खुदा को क्यूँ न सुख पाया करूँ मैं
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