मुट्ठी में चाँद को है समंदर लिए हुए
रहता है हुस्नो इश्क ये मंज़र लिए हुए
खुशियाँ हमारे गिर्द चलें साथ साथ ज्यूँ
सखियाँ पडी हों पीछे महावर लिए हुए
गुस्से में फैसला न करो आर पार का
दौड़ो न बात बात में खंज़र लिए हुए
औकात पर न जा तू मेरे ज़र्फे दिल को देख
क़तरा है बेक़रार समंदर लिए हुए
आँखों में उसके खूं था मगर बुत बना रहा
मैं सामने खडा था कबूतर लिए हुए
जब सुन रहे थे उनकी तो हांथों में फूल थे
अपनी कही तो आज हैं पत्थर लिये हुए
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