इश्क जेरे समंदर नदी की तरह
चाँद के साथ है चांदनी की तरह
नेमतें नेक इन्सां को मिलती ही हैं
बंदगी हो अगर बंदगी की तरह
मौत का दिन है तय, क्यूँ मरें उम्र भर
ज़िंदगी को जियें ज़िंदगी की तरह
दोस्तों से कभी कुछ छिपाओ नही
बात कह दो, भले दिल्लगी की तरह
ख्वाहिशों का जहां में कहाँ अंत है
ये हैं सहराओं में तश्नगी की तरह
फ़र्ज़ अपना खुदा भूलता है कहाँ
आदमी जो रहे आदमी की तरह
रूह की ताब जब हो मयस्सर तो फिर
तीरगी भी दिखे रोशनी की तरह
एहतिराम उनका होगा मेरी वज़्म में
शर्त ये है कि आयें सफ़ी की तरह
फ़र्ज़ को बोझ कहना मुनासिब नहीं
ये अकीदत की है पेशगी की तरह
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