लोग कहते हैं तो, हम भी आजमा कर देख लें
सामने पत्थर के अपना सर झुका कर देख लें
आज उसके सामने फिर मुस्करा कर देख लें
अब समंदर से कई दरिया बहा कर देख लें
सब्र की भी इन्तेहाँ को आजमा कर देख लें
उम्र भर जिसको रही शिकवा शिकायत से मेरी
आज खामोशी उसे अपनी सुनाकर देख लें
है यही बेहतर कि सबको सच बता कर देख लें
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