सच को सच कहता हूँ, घबराता नहीं
झूठ मुझको बोलना आता नहीं
सच न बोले गर तो ऐसा दोस्त भी
फूटी आँखों भी मुझे भाता नहीं
गर कमी है कोई मुझमे, बोलिए
मान लूँगा, डर से है नाता नहीं
मैं नहीं हूँ कोई ऋषि मुनि, इस लिए
मानुषी कमियों से बच पाता नहीं
सांच को लगती न कोई आंच है
पर सभी को सत्य पच पाता नहीं
सत्य हो कड़वा अगर तो सोचिये
यह अप्रिय हो तो सहा जाता नहीं
सच करो स्वीकार, मिलता है सुकूं
इस लिए मैं सच से घबराता नहीं
मैं नहीं हूँ कोई ऋषि मुनि, इस लिए
ReplyDeleteमानुषी कमियों से बच पाता नहीं
is satya ko itni aasaani se koi sweekar kar pata nahi