लुका छिपी के तमाशे में हारती क्यूँ थी
वो छुप के मेरे दरीचे में झांकती क्यूँ थी
नज़र थी तेज तो चेहरा था सांवला उसका
खुशी में जोर से मुझको वो मारती क्यूँ थी
मिला न पाई हया से मेरी नज़र से नज़र
मुझी से पहले मेरे ख्वाब जानती क्यूँ थी
वो सज संवर के निकलती थी जब मेरी जानिब
गुदाज़ हांथों से चेहरे को ढांपती क्यूँ थी
करीब जाके मेरी माँ के उसके आँचल से
छुपा के आँख वो मुझको निहारती क्यूँ थी
मैं रो रहा हूँ तो बस उसकी चश्मे नम के सबब
कहे बगैर मेरे कर्ब जानती क्यूँ थी
वो छुप के मेरे दरीचे में झांकती क्यूँ थी
नज़र थी तेज तो चेहरा था सांवला उसका
खुशी में जोर से मुझको वो मारती क्यूँ थी
मिला न पाई हया से मेरी नज़र से नज़र
मुझी से पहले मेरे ख्वाब जानती क्यूँ थी
वो सज संवर के निकलती थी जब मेरी जानिब
गुदाज़ हांथों से चेहरे को ढांपती क्यूँ थी
करीब जाके मेरी माँ के उसके आँचल से
छुपा के आँख वो मुझको निहारती क्यूँ थी
मैं रो रहा हूँ तो बस उसकी चश्मे नम के सबब
कहे बगैर मेरे कर्ब जानती क्यूँ थी
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी.
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 19 - 04 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
करीब जाके मेरी माँ के उसके आँचल से
ReplyDeleteछुपा के आँख वो मुझको निहारती क्यूँ थी
kitne komal bhaw - jite jaagte