अगर तुमने मुझे रस्ते से भटकाया नहीं होता
तो मैंने मंजिले मक़सूद को पाया नहीं होता
हमारी मुफलिसी पर रूह गर कोसे तो समझाना
की मेरे जैसों की किस्मत में सरमाया नहीं होता
ख़याल आता अगर डरते हो मुस्तकबिल से तुम मेरे
तो मीठे बोल से धोखा कभी खाया नहीं होता
तुम्हारा कल हमारे आज में पैबस्त ही रहता
तो मेरा आज मुझको इस तरह भाया नहीं होता
झुका था आसमां बढ़ कर ज़मीं भी बांह फैलाती
धुंधलका दरमियां उनके कभी छाया नहीं होता
तो मैंने मंजिले मक़सूद को पाया नहीं होता
हमारी मुफलिसी पर रूह गर कोसे तो समझाना
की मेरे जैसों की किस्मत में सरमाया नहीं होता
ख़याल आता अगर डरते हो मुस्तकबिल से तुम मेरे
तो मीठे बोल से धोखा कभी खाया नहीं होता
तुम्हारा कल हमारे आज में पैबस्त ही रहता
तो मेरा आज मुझको इस तरह भाया नहीं होता
झुका था आसमां बढ़ कर ज़मीं भी बांह फैलाती
धुंधलका दरमियां उनके कभी छाया नहीं होता
beautiful
ReplyDeleteख़याल आता अगर डरते हो मुस्तकबिल से तुम मेरे
ReplyDeleteतो मीठे बोल से धोखा कभी खाया नहीं होता
waah